साहित्य उपवन
एक तरफ मन बेचैन सा-कविता
एक तरफ मन बेचैन सा, हर पल उडते रैन सा ।
उद्घिन दिन मन बैन का, ठहरे जलज में व्योम सा।।
क्या ढूढने की कोशिशों के प्रश्न का,
छटपटाहट पाने को उत्तर की गहनता।
पड़ाव हो चला उम्र का थकन पर,
स्वप्न में ही खुश होने की व्यग्रता।।
मुकरते हुए चेहरो की कठीनाई का,
बंद कपाटों को खोलने की चाह का।
इस बार हाथ फिर भर जायेंगे ,
वो फिर दोहराई गयी कूटिलता ।।
ये अनवरत भागदौड़ का आइना,
ये सडको का न ख़त्म होता कारवां।
मेरी माटी मुझे गले लगा न ले,
इसी डर में ये काँपता मन बेचैन सा।।
कि क्यों हर भूमिका में निखरी मैं,
कि क्यों तेरे हर पड़ाव से निकली मै।
क्या अदा करू ए मेरे खुदा ,
भर जाये जो तेरा ख़ाली दामन सा।।
गुम न कर मुझे ए ज़िन्दगी,
ना खो बचपन की वो बन्दगी।
ये मैं खड़ी रहूंगी हमेशा ,
गिराने के जोर की तू कर ले इन्तहा।
हर पल तुझे निहारने की जिद रही,
जब तलक तेरा भी मन न हो बेचैन सा।।
जब तलक तेरा भी मन न हो ———सा।
” पारखी” डॉ लता शर्मा