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राष्ट्रीय

मैं हिन्दू हूँ मुझे भी जीने का हक है….

मैं हिन्दू हूँ मुझे भी जीने का हक है - दिव्य अग्रवाल

मैं हिन्दू बोल रहा हूँ । जब तक मुसलमान था सुरक्षित था । जब हिन्दू बना साँसों पर भी कट्टरपंथियो का पहरा है । जब मुसलमान था तब मुस्लिम वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष था । जब हिन्दू बना तब जेल में हूँ। जब सच बोला , मानवता हत्या के विरुद्ध बोला , कट्टरवादिता हिंसा के बारे में बोला तब माननीय न्यायालय ने हेट स्पीच का आरोपी मान लिया पर जब माननीय न्यायालय में हिंसात्मक विचारो के विरुद्ध 27 आयतों का संज्ञान लेने के लिए अर्जी दी थी तब डांटकर भगा दिया ।

दिव्य अग्रवाल
दिव्य अग्रवाल(राष्ट्रवादी लेखक व विचारक, गाजियाबाद)

क्या वास्तव में मेरा व्यक्तव्य नफरत भरा है तो क्यों न इसकी सुनवाई हो , क्यों न उन आयतों पर संविधानिक रूप से बहस हो जिनको प्रसारित करने पर मुझे अपराधी माना जा रहा है । क्यों न कपिल सिब्बल जी के साथ उन आयतों पर न्यायालय में चर्चा हो । हिंदुस्तान में गैर मुस्लिमो काफिरो की हत्या करना , लूटना, प्रताड़ित करना जायज है । परन्तु हिंसात्मक विचारो के विरुद्ध स्वम की रक्षा की बात करना अपराध है । साधुओं की हत्या होने पर , मूर्तियों को तोड जाने पर , गैर मुस्लिम महिलाओं के साथ दुराचार होने पर , मन्दिरो को तोड़ने पर , काफिरो गैर मुस्लिमो के कत्ल होने पर कोई वरिष्ठ अधिवक्ता न्यायालय में सुनवाई के लिए नही जाता क्योंकि शायद ये सब सेक्युलरिज्म का हिस्सा हो । परन्तु अपनी सुरक्षा , मानवता संरक्षण , इस्लामिक कट्टरवादिता की बात करते ही सेक्युलरिज्म खतरे में कैसे आ जाता है ।

क्या मैं मुसलमान से हिन्दू बना ये मेरा अपराध है या जो तथ्य मैंने समाज के समक्ष रखे उनकी सचाई व वास्तिवकता जानकर बाकी लोग भी सनातन धर्म मे घर वापसी करेंगे इसका डर कुछ लोगो को है । क्या ये सब प्रश्न वसीम रिजवी से जितेंद्र नारायण त्यागी के अंतःकरण में चल रहे होंगे । यदि हाँ तो सही भी है । क्योंकि वो लोग जो खुले मंचो से ,जलसों से , सभाओं से , गैर मुस्लिमो को खुली चुनौती देते है उन पर कोई संवैधानिक कार्यवाही नही होती । लेकिन जब भी इस कट्टरवादी सोच के विरुद्ध कोई आवाज उठती है उसे कुचल दिया जाता है । अतः क्या हिन्दू बनने के बाद मैं जीवित भी रह पाऊंगा ये प्रश्न मन मे उठना भी इन परिस्थितियों में उचित ही होगा । हिन्दू होना या हिन्दू बनना क्या अभिशाप है । अब समय है जितेंद्र नारायण की गिरफ्तारी तो हुई पर क्या उनके उन विचारों पर भी चर्चा होगी , क्या न्यायालय स्वतः उस पी आई एल पर स्वतः संज्ञान लेगा जिसकी बात सिर्फ जितेंद्र नारायण त्यागी ही नही अपितु भारत के साथ साथ विदेशों में भी बहूत से लोग करते हैं। क्यों न उन आयतों पर न्यायायिक चर्चा हो जिन्हें बाकी धर्म के लोग हिंसात्मक विचारधारा से प्रेरित मानते हैं।

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