धर्म
मुर्दा कब्रों पर माथा पटकने के स्थान पर सनातन धर्म का अनुसरण करें- दिव्य अग्रवाल
प्रायः यह चित्र दिखने में अति साधारण प्रतीत हो सकता है परन्तु इस चित्र में एक गूढ़ संदेश निहित है । एकतरफ आज कलयुग का वह समय आ गया है की अपने परिवारजन की मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के पश्चात ,शमशान घाट से वापस आते समय नीम की कड़वी पत्तिया कुछ लोग मात्र इसलिए खाते हैं की कहीं मृत व्यक्ति की आत्मा उन्हें चिपट न जाए परन्तु मुर्दा कब्रों पर माथा टेकने व् वहां पर मीठा चढ़ाकर उसको खाने में वही दिग्भ्रमित हिन्दू समाज के लोग स्वयं को गौरान्वित महसूस करते हैं।अब यह कोई लालच है या किसी का भय जिसके कारण बड़े बड़े राजनेता , कलाकार , खिलाड़ी आदि हिन्दू समाज के व्यक्ति प्रायः ऐसा करते हुए देखे जा सकते हैं।यहाँ तक की सनातनी वैज्ञानिक परम्पराओ को भी ऐसे लोगो द्वारा आडंबर घोषित कर दिया जाता है। परन्तु इस विषमकाल खंड में ऐसे चित्रों को देखकर प्रतीत होता है की सनातन धर्म की जड़ें इतनी शसक्त व् वृहद हैं जिनके समक्ष बड़े बड़े राजा भी समर्पित व् नतमस्तक हैं। इस चित्र में भदरी रियासत राज परिवार के सदस्य राजा रघुराज प्रताप सिंह राजा भइया मकर सक्रांति के पर्व पर सनातन धर्म के महान तीर्थो में से एक गंगासागर में स्नान ध्यान कर एक समान्य साधक की भाँती रेत पर बैठकर शंख बजा रहे हैं प्रभु श्री राम व् श्री हनुमान जी महराज की स्तुति का अमृत पान कर रहे हैं। यह सनातनी आस्था की मजबूती का ही प्रमाण है जिससे आज की युवा पीढ़ी को भी प्रेरणा लेनी चाहिए की जीवन कितना ही वैभवशाली क्यों न हो परन्तु अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन परइ निष्ठा व् दृढ़ता से करना चाहिए ।सनातन धर्म में जीवन प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को चाहिए की वह सनातन धर्म की महानता व् सत्यता का अध्यन करें व् विधर्मीयो वाले कुकृत्यों का त्याग कर सनातन समाज को सृदढ़ करें ।