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एक रूपया व एक ईट

एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 16

पणि और सरमा का सम्वाद :

सरमा- मैं इन्द्र की भेजी दूती हूँ।

पणि- तू इस स्थान तक कैसे पहुँच गयी, यह रास्ता बहुत लम्बा है। तूने नदी कैसे पार की? तू क्यों आई है?

सरमा- तुम जो इन्द्र की गायों को लूट कर लाये हो, मैं उन्हें वापिस चाहती हूँ।

पणि- इन्द्र कैसा है। सरमा, तुम हमसे मिल जाओ और इन गार्यो में तुम्हारा भी हिस्सा हो जायेगा । ( वास्तव में पणि कुशल राजनीतिज्ञ थे)।

सरमा- मेरा इन्द्र अपराजेय है। जब वह तुम पर आक्रमण करेगा, डर के कारण तुम जमीन पर लेट जाओगे।

पणि- देख ये वे गौएं है। इन्हें हमसे युद्ध किये बिना कोई नहीं ले जा सकता। हमारे पास आयुध भी तीक्ष्ण हैं (अर्थात पणि लोग रक्षार्थ शस्त्र भी रखते थे ) ।

सरमा- हमारे बृहस्पति के बाण तुम्हें चैन नहीं लेनें देगें, तुम उनका मुकाबला नहीं कर पाओगे।

पणि- गौ-घोड़े तथा अन्य निधियों का खजाना हम इस पहाड़ की गुफा में दृढ़ता से बन्द करके, उसकी रक्षा कर रहे हैं, तू यहाँ व्यर्थ ही आई है।

सरमा- हमारे अंगिरस ऋषि यहाँ आयेंगे और बलपूर्वक गायों को ले जायेंगे।

पणि- तू हमारी बहन बन जा तथा कुछ गायों को लेकर हमारे साथ रह । सरमा- मै यह भाई-बहिनपना नहीं जानती, तुम हमारी गायें वापिस कर दो।

सरमा वापिस चली जाती है तथा इन्द्र को सारा भेद दे देती है। इन्द्र, बृहस्पति व अंगिरस के साथ सेना लेकर आता है तथा गुफा को नष्ट करके पणियों को परास्त करके गायों को वापिस ले जाता है।

पढ़ें – शेष अगले अंक में

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