गौतमबुध नगर
जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर: गौरव भाटिया प्रकरण का सुखांत, परंतु अधिवक्ताओं की हड़ताल पर सवाल
ग्रेटर नोएडा:जिला न्यायालय गौतमबुद्धनगर में बीते बुधवार को हुए गौरव भाटिया प्रकरण का शुक्रवार को सुखांत हो गया। इसके साथ ही अधिवक्ताओं द्वारा कारण अकारण आए दिन होने वाली हड़ताल को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गई है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया प्रकरण में दो दिन में ही सभी गिले शिकवे दूर कर दोनों पक्षों द्वारा समझौते की मेज तक पहुंचने को वर्तमान बार अध्यक्ष उमेश कुमार भाटी और सचिव धीरेन्द्र सिंह भाटी की कूटनीतिक विजय मानी जा रही है। दरअसल गत बुधवार को गौरव भाटिया के साथ कथित तौर पर उस समय कुछ स्थानीय अधिवक्ताओं द्वारा अभद्रता कर दी गई थी जब वो किसी मामले की पैरवी में यहां आए थे।उस दिन बार एसोसिएशन के आह्वान पर अधिवक्ता हड़ताल पर थे।उस दौरान किसी अधिवक्ता ने गौरव भाटिया का बैंड नोच लिया था। उनके साथ हुई अभद्रता पर न केवल सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बल्कि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेकर कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी थी। इस विषम परिस्थिति में जिला न्यायालय बार एसोसिएशन ने मामले को सुलह समझौते से निपटाने का निर्णय लिया।बार के दोनों शीर्ष पदाधिकारियों ने गौरव भाटिया से उस दिन की घटना के लिए लिखित खेद जताया। हालांकि उनके इस कदम का कुछ बार सदस्यों ने विरोध भी किया। इसके बाद गौरव भाटिया को शुक्रवार को बार एसोसिएशन के होली मिलन समारोह में आमंत्रित किया गया। इस समूचे मामले में बार एसोसिएशन को जिस प्रकार खेदजनक स्थिति का सामना करना पड़ा है, उससे जिला न्यायालय में आए दिन होने वाली अधिवक्ताओं की हड़ताल और उस दौरान न्यायिक कार्यों को पूरी तरह रोक देने की परिपाटी पर प्रश्न उठने लगे हैं। अधिवक्ताओं की हड़ताल को लेकर कोई नियम या निर्देशिका अस्तित्व में नहीं है। यह अधिवक्ताओं की मनमर्जी का सौदा है।’वादकारी का हित सर्वोपरि’ जैसा आदर्श नारा लगाने वाली बार एसोसिएशन्स ठीक इसके विपरीत कार्य करती हैं। किसी खास व्यक्ति की जमानत के दौरान बार एसोसिएशन द्वारा जानबूझकर हड़ताल किया जाना आम बात है। बीते सोमवार से बुधवार तक चली हड़ताल के लिए एल्विस यादव की जमानत याचिका विचाराधीन होना भी एक छिपा हुआ कारण बताया जा रहा है। हालांकि गौरव भाटिया प्रकरण होते ही हड़ताल और सारे कारण स्वत: समाप्त हो गये।गौरव भाटिया प्रकरण में अनुमान लगाया जा रहा था कि यदि दोनों पक्षों के बीच समझौता नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अधिवक्ताओं की हड़ताल के संबंध में कोई महत्वपूर्ण निर्णय भी सुनार सकता था जिसका दूरगामी परिणाम होता,
रिपोर्ट राजेश बैरागी (वरिष्ठ पत्रकार)
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