एक रूपया व एक ईट
एक रूपया व एक ईट:- अग्र -वैश्य समाज की गौरव गाथा , भाग 24
………. अग्रवाल समाज में सदा सर्वदा के लिए प्रतिष्ठित हो गई।
लक्खी का तालाब और हरभज शाह
अग्रोहा बसने के समय में ही एक बनजारे जिसका नाम लक्खी सिंह था, उसने परलोक की बद पर, हरभज शाह से एक लाख रूपये अधार लिए थे। कुछ समय बाद उसके मन में विचार आया कि यह रूपया मैंने ले तो लिया, पर मैं इसे चुकाऊँगा कैसे? यदि मैं इसे चुका न पाया, तो अगले जन्म में बैल बनकर मुझे यह रकम चुकानी पड़ेगी। उसने विचार किया कि बैल बनकर पिसने से अच्छा है कि मैं ये रूपये यूँ ही वापिस कर दूँ। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति हरभज शाह की दुकान पर गया और कहा कि मैं रूपये वापिस करना चाहता हूँ। लेकिन हरभज शाह ने कहा कि ये रूपये उसने परलोक की बद पर उधार लिए है, अत: वापिस नहीं हो सकते। लक्खी सिंह निराश होकर वापिस आ गया। उसे रास्ते में एक साधु मिला। लक्खी सिंह ने उन्हें सारी बातें बताई तथा इन उधार के रूपयों से छुटकारा दिलाने की बात कही, कि नहीं तो मैं, जीवन भर चैन से नहीं सो सकूंगा। साधु ने लक्खी से कहा कि इन रूपयों से तुम यहाँ पर विशाल तालाब बनाओ, जो क्षेत्र के निवासियों की प्यास को बुझा सके। उन्हीं रूपयों से उसने 80 एकड़ भूमि में एक विशाल तालाब बनवाया। उसके चारों ओर सुन्दर-सुन्दर घाट बनवाये। उसमें स्वच्छ जल भरकर उसके चारों तालाब तैयार होने पर लक्खी सिंह ने इस पर पहरेदार नियुक्त कर दिये और आज्ञा दी, कि तालाब का पानी कोई न पी सके। लोगों ने इसका कारण पूछा, तो लक्खी सिंह ने बताया कि यह तालाब हरभज शाह का निजी तालाब है। जब तक वह नहीं कहेगा, तब तक पानी उसकी बिना आज्ञा के नहीं लिया जायेगा। जब हरभजन शाह को इस बात का पता लगा कि तालाब के किनारे से लोग प्यासे जा रहे हैं, तो वे वहाँ आये और उन्होंने लक्खी सिंह का सारा रूपया जमा कर लिया तथा तालाब पर से पहरेदारी उठा ली गई। यही तालाब “लक्खी सागर” के नाम से विख्यात हुआ।
अग्रोहा को तीर्थ के रूप में विकसित करने ….….. अगले अंक मे