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विधर्मियो का वध दुर्गा शप्तशती का मूल ज्ञान है

विधर्मियो का वध दुर्गा शप्तशती का मूल ज्ञान है- दिव्य अग्रवाल

नवरात्रि के पवित्र दिनों में दुर्गा शप्तशती का पाठ लगभग सभी सनातनियो द्वारा किया जाता है परन्तु पाठ करने के उपरांत भी सनातनी समाज दुर्गा शप्तशती का अनुशरण करने में अभी तक असमर्थ है । माँ जगदम्बा को दानवो का वध करने हेतु प्रत्यक्ष युद्ध इसलिए नही करना पड़ा था कि दानव शक्तिशाली थे । माँ तो स्वयं आदिशक्ति हैं क्षण भर में पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश कर सकती हैं ।

माँ तो युद्ध के माध्यम से पूरी मानवता को शिक्षा देना चाहती है कि विधर्मियो का वध करना ही एकमात्र विकल्प होता है । माँ का कोई भी स्वरूप बिना शस्त्र व शास्त्र के पूर्ण नही है । नवरात्रि में सम्पूर्ण सनातनी समाज माँ भवानी द्वारा किये गए दानवो के मर्दन की महिमा को पढ़ता है परन्तु क्रियान्वित नही करता । माँ की शोभा यात्रा हो या धार्मिक अनुश्ठान जिस क्षेत्र में भी विधर्मियों की संख्या का अनुपात 30 प्रतिशत भी है वहाँ पर विधर्मियो द्वारा उत्पात मचाया जाता है और सनातनी समाज प्रतिकार करने के स्थान पर खोखले व दिखावटी क्रियाकलापो में ही उलझा रहता है । यदि वास्तव में दुर्गा शप्तशती के पाठ की महिमा समझनी है तो माँ भवानी की प्रेरणा से आत्मरक्षा व मानवता की सुरक्षा हेतु प्रतिकार करना सीखना होगा। माँ ने पूरी दुर्गा शप्तशती में विधर्मियो को दंडित करने की ही शिक्षा दी है । सनातन में अधर्म की कोई क्षमा नही है , सनातन के अनुयायियों को धर्म हिंसा तदैव च के सिद्धांत का स्मरण करना ही होगा।

दिव्य अग्रवाल लेखक व विचारक
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